छतरपुर। मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन और मध्य प्रदेश गांधी स्मारक निधि द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित तीन दिवसीय लोक साहित्य उत्सव अंतर्गत छतरपुर से आरंभ हुई हिन्दी बुंदेली अंतर्संवाद यात्रा ओरछा महाविद्यालय पहुंचकर संपन्न हुई। इस अवसर पर महाविद्यालय में लोकभाषा विमर्श और रचनापाठ का कार्यक्रम आयोजित किया गया। विमर्श में मुख्य वक्तव्य दिल्ली विश्व विद्यालय के प्राध्यापक प्रो. जसवीर त्यागी ने दिया और सम्मेलन की छतरपुर इकाई के अध्यक्ष नीरज खरे ने बुंदेली में सार्थक हस्तक्षेप किया। कार्यक्रम का संचालन कवि और संस्कृतिकर्मी सन्तोष कुमार द्विवेदी ने किया।
प्रो. जसवीर त्यागी ने कहा लोक को बचाकर ही हम लोक भाषा और संस्कृति बचा पाएंगे। जिस तरह से हमारे खान-पान  में पनीर का बढ़ता वर्चस्व हमारे आँचलिक व्यंजनों को हाशिये पर धकेल रहा है, उसी तरह से अँग्रेजी भाषा भी हमारी लोक भाषाओं को नेपथ्य में धकेल रही है। इस तरह की सोच और व्यवहार पूंजीवादी और वर्चस्ववादी है, जो हम सभी के लिए बहुत घातक है। जिस तरह से मनुष्य का विकास समाज में ही संभव है, उसी तरह भाषाओं की प्रगति भी लोक भाषाओं के संसर्ग में ही हो सकती है। लोक में हमारी विविध-संपदाओं का अनमोल खज़ाना भरा हुआ है और यह हम सभी का सामाजिक-दायित्व बनता है, कि हमें अपनी धरोहर को सहेजकर रखना चाहिए। लोक हमें सरल,संवेदनशील और एक बेहतर मनुष्य बनाता है।
बुंदेली में बोलते हुए सम्मेलन की छतरपुर इकाई के अध्यक्ष नीरज खरे ने बुंदेली में संवाद करते हुए  कहा कि हम बुंदेली भाषियों को अपने दैनिक जीवन में घर, परिवार और बुंदेली समझने वाले लोगों के साथ बुंदेली में ही संवाद करना चाहिए। अगर हम बोलचाल में बुंदेली का प्रयोग नहीं करेंगे तो धीरे-धीरे यह समाप्त हो जाएगी। हमारा दायित्व है कि बुंदेली संस्कृति, साहित्य, खानपान एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। जिस प्रकार अन्य भाषा के दो व्यक्ति आपस में अपनी भाषा में बात करते हैं, हमें भी हीन भावना को  छोड़कर आपसी संवाद के लिए बुंदेली का प्रयोग करना चाहिए।
हिंदी और बुंदेली के लेखक, प्राध्यापक डॉ. बहादुर सिंह परमार ने कहा की बुन्देली में समृद्ध लोकसाहित्य मौजूद है, जिसके संरक्षण संवर्धन के सरकारी गैरसरकारी प्रयासों के परिणाम स्वरूप उन्हें पुस्तकाकार रूप में ला पाए हैं , लेकिन अभी बहुत काम करने की आवश्यकता है।
महाविद्यालय  के प्राचार्य एच के खरे ने केशव शोध पीठ का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इसे महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्व विद्यालय से संबद्ध करते हुए महाविद्यालय ओरछा के साथ संलग्न किया जाए ताकि उसके माध्यम से कुछ सार्थक कार्य हो सकें। अभी सिर्फ एक बोर्ड और वर्षों से पड़े ताले के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
कविता कहानी का पाठ
महाविद्यालय में संपन्न हुए हिंदी बुंदेली अंतर्संवाद यात्रा के समापन अवसर पर महाविद्यालय में देश प्रदेश के ख्यातिलब्ध कवि, कथाकारों ने रचनापाठ किया। रचनापाठ सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय  के  प्रो. संजीव कौशल ने की । संचालन कवि व संस्कृतिकर्मी सन्तोष कुमार द्विवेदीने किया।
रचनापाठ का आगाज महेश अजनबी ने अपनी गजल मोहब्बत मेरी भस्मासुरी है से किया। जिसे युवा कवियित्री निदा रहमान और शिल्पी जैन ने आगे बढ़ाया। इसके बाद ख्यात कहानीकार मनीष वैद्य ने अपनी कहानी खिरनी का पाठ किया। फिर समकालीन कविता की चर्चित कवियित्री नेहा नरूका, निधि अग्रवाल, दौलतराम प्रजापति, मालिनी गौतम और जसवीर त्यागी, प्रो. संजीव कौशल और वरिष्ठ कवि मणि मोहन ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। आभार प्रदर्शन निवाड़ी महाविद्यालय में हिंदी की  सहायक प्राध्यापक  डॉ पायल लिल्हारे ने किया। इस अवसर पर  समस्त प्राध्यापक, हिंदी के शोधार्थी एवं महाविद्यालय के छात्र उपस्थित रहे।