नाटक चंदा बेडऩी के जोरदार मंचन से गिरा पांच दिवसीय नाट्य समारोह का परदा

छतरपुर। भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली के सहयोग से भारत उदय सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान छतरपुर द्वारा पांच दिवसीय शंखनाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का सफल समापन हो गया। नट बुंदेले भोपाल की तीस कलाकारों की टीम ने आखिरी दिन मंच पर ऐसा जलवा बिखेरा कि यह महोत्सव यादगार हो गया। 38 वर्षों से नाटक में चंदा बेडऩी का किरदार निभा रहीं वरिष्ठ अदाकारा रंजना तिवारी ने मंच पर कभी यह झलकने नहीं दिया कि उम्र उन पर हावी हो रही है।शुरू से लेकर अंत तक नाटक के कलाकार पूरी ऊर्जा से कहानी को आगे बढ़ाते रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों के स्वागत से हुई। समापन दिवस पर भारतीय सिंधु सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष लालचंद लालवानी, एडिशनल एसपी विक्रम सिंह, एडीपीओ केके गौतम, वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्रवाल, हम फाउंडेशन के कमल अग्रवाल, प्रो.सुमति प्रकाश जैन और सिंधी समाज के अध्यक्ष श्याम आडवाणी उपस्थित रहे। अपने उद्बोधन में एडिशनल एसपी विक्रम सिंह ने कहा कि छतरपुर में रंगमंच को नए आयाम देने का जो कार्य शिवेन्द्र शुक्ला और उनकी टीम कर रही है, वह सम्मान की पात्र है। लालचंद लालवानी ने कहा कि एक समय ऐसा था जब नाटक के लिए दर्शक कम पड़ते थे लेकिन लगातार और उत्कृष्ट नाटकों के प्रदर्शन से अब सीट कम पड़ रहीं हैं, इसके लिए पूरी टीम बधाई की पात्र है। समाजसेवी कमल अग्रवाल ने कहा कि बेडऩी नाम सुनकर एक अलग छवि दिखाई देती है लेकिन इस नाटक ने उस भ्रम को तोड़ दिया ।कलाकारों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करके नाटक और हर किरदार में जान डाल दी।
यह थी नाटक की कहानी
एक ब्राह्मण युवक लखन को बेडऩी समुदाय की लड़की चंदा से प्यार हो जाता है। चंदा पहले इसे एक मजाक के रूप में लेती है और ब्राह्मण युवक के लिए ऐसी शर्तें निर्धारित करती है जिन्हें पूरा करना असंभव है, क्योंकि इसका अर्थ होगा संपूर्ण ब्राह्मण समाज की परंपराओं का खंडन। लेकिन लखन को सारी शर्तें मंजूर हैं। चंदा, लखन की ईमानदारी और समर्पण भाव और भोलेपन से प्रभावित हो जाती है, और अंतत: उसके प्यार में पड़ जाती है लेकिन इससे दोनों समुदायों में संकट सुनिश्चित हो जाता है। ब्राह्मण समाज और लखन के पिता राजा से समस्या का समाधान करने की अपील करता है। राजा, जो खुद चंदा से प्यार करता है, ईष्र्यालु हो जाता है और हस्तक्षेप करने का फैसला करता है। उतनी ही ईष्र्यालु रानी भी चंदा से है क्योंकि वो जानती है राजा चंदा से प्रेम करता है। रानी कूटनीति में निपुण कुटना के साथ मिलकर षडयंत्र रचती है जिसमे राजा के नवजात पुत्र की जान की सलामती के लिए चंदा द्वारा आकाश में तनी रस्सी पर चंदा का नाच तय होता है और जब चंदा जीतने की कगार पर होती है, तो रस्सी काटने के लिए मोची की मदद ली जाती है, जैसा कि किवदंती है। किवदंती के विपरीत मोची भी षडयंत्र का शिकार बन जाता है। और इस तरह क्रूर, धूर्त और लापरवाह राजनीतिक व्यवस्था अपने स्वार्थी, क्षुद्र कारणों से आम जन की मासूमियत और विश्वास को कुचल देती है। नाटक में रंजना तिवारी के साथ संजय गर्ग,राजेश गोस्वामी,अरविंद बिलगैयां,सुरेन्द्र वानखेड़े,अंशपायन सिन्हा आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।संगीत पं.ओमप्रकाश चौरसिया का तथा नृत्य निर्देशन पद्मश्री पं.रामसहाय पांडे का था।लेखन,परिकल्पना एवं निर्देशन वरिष्ठ रंग निदेशक अलखनंदन का था।
समापन पर हुआ कलाकारों एवं टीम का सम्मान
पांच दिवसीय शंखनाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के समापन पर मंच से सभी कलाकारों का सम्मान किया गया तो वहीं इस आयोजन में स्टेज के पीछे रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सर्वेश खरे, अभिदीप सुहाने, राजेश कुशवाहा, निशांत वाल्मीकि, प्रद्युम्न राठौर, रिया सेन और राशि सिंह को अतिथियों ने स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के संचालन की पांचों दिन की जिम्मेदारी नीरज खरे द्वारा निभाई गई, जिसमें लिए उन्हें भी मंच से सम्मानित किया गया।