खजुराहो। ऋतुओं के राजा बसंत की दस्तक के साथ प्रेम और अध्यात्म की प्राचीन नगरी में नृत्य की उमंग और उल्लास अपने उत्कर्ष पर है। घुंघरुओं की झंकार से खजुराहो की आबो-हवा में सुरीला संगीत सुनाई पड़ रहा है। मधुमास के राग के साथ नर्तक-नर्तकियों की थिरकन आत्मा को आनंद से भर रही है। 51वें खजुराहो नृत्य समारोह में जिज्ञासा, प्रयोग और नवाचारों से सजी प्रस्तुतियों ने दूर-दराज से आए नृत्यप्रेमियों के अंतर्मन को गुदगुदा दिया है। एक हजार वर्ष प्राचीन मंदिरों के आंगन में बनी नृत्य भूमि पर प्रतिदिन कल्पना, कथा और विचार साकार हो रहे हैं।
मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के लिए उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन छतरपुर के सहयोग से आयोजित 51वाँ खजुराहो नृत्य समारोह के पांचवें दिवस की शाम में मोहिनीअट्टम, कथक और ओडिसी के नाम रही। पांचवें दिन पहली नृत्य प्रस्तुति पद्मश्री विदुषी भारती शिवाजी, दिल्ली की मोहिनीअट्टम की रही। अगले क्रम में नाट्य मुक्काचलम की प्रस्तुति दी गई। इस प्रस्तुति को मंच पर प्रदर्शन करने वाले कलाकार गुरु भारती शिवाजी, दीप्ति नायर, मेघा नायर, रुक्मणी मृणालिनी सेन और आदित्य आर थे। इसके बाद ओमानथिंकल किदावो, अष्टपदी, कथक और ओडिसी की प्रस्तुति हुई।
मंदिर लयात्मक ही नहीं, एक आध्यात्मिक अनुभूति: रजनी राय
कलाविदों और कलाकारों के मध्य संवाद का लोकप्रिय संवाद सत्र का चौथा दिन नृत्य का मंदिरों से संबंध विषय के नाम रहा। कथक केंद्र दिल्ली से संबद्ध व नृत्य गुरू पं. पुरू दधीच की शिष्या सुश्री रजनी राय ने व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि मंदिर लयात्मक ही नहीं, एक आध्यात्मिक अनुभूति भी है। इसका धर्म से संबंध नहीं, हमारे भीतरी मन से है।यही वजह है कि खजुराहो मंदिरों में नृत्य करने के बाद मन आध्यात्मिक आनंद से भर जाता है। सुश्री रजनी राव ने कहा कि हमें तो सभागारों और मंचों पर पर्फार्म करने की आदत है। लेकिन पचास साल पहले खजुराहो के मंदिरों को नृत्य समारोह के लिए चुनने वाले मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग के तत्कालीन आयोजक और उसमें निरंतर प्रगति करने वाले अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी के सारे वर्तमान पदाधिकारी बधाई के पात्र हैं।रजनी जी ने कहा कि शब्द भले ही नश्वर हों पर ध्वनियां अनश्वर हैं। इसलिए यहां बोले गये शब्दों की अनुगूंज सदा रहेगी। बाद में आपने कथक नृत्य का लघु प्रदर्शन भी किया।साथ ही कला रसिकों से संवाद भी किया।
बाल नृत्य कलाकारों के नृत्य में भाव, अभिनय का सौंदर्य
नई पीढ़ी को नृत्य के प्रति प्रेरित करने और युवाओं को भारतीय संस्कृति एवं कलाओं से जोडऩे के उद्देश्य के साथ खजुराहो नृत्य समारोह में पहली बार आयोजित किए जा रहे खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव का मंच भी अब लोकप्रिय होता जा रहा है। इस महोत्सव के पांचवें दिन बड़ी संख्या में नृत्य प्रेमी बाल नृत्य कलाकारों का उत्साहवर्धन करने पहुंचे। पहली प्रस्तुति भरतनाट्यम की रही। इंदौर की अवनी जादौन ने सर्वप्रथम मल्लारी की प्रस्तुति दी। मल्लारी एक पारंपरिक नृत्य है जो मंदिर उत्सव में देवता कि शोभायात्रा को दर्शाता है। उसके साथ ही नटेश कौथवम की प्रस्तुति दी। यह राग गंभीर नाट्टई और आदि ताल में निबद्ध था। इसके बाद प्रसिद्ध संगीतकार मदुरै एम मुरलीधरन द्वारा रचित विनायगर की प्रस्तुति दी, जो एक प्रसिद्ध रचना है।