झोलाछापों पर सख्ती, लेकिन सरकारी डॉक्टर नदारद
छतरपुर। जिले में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। एक तरफ प्रशासन झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्रवाई करते हुए उनके क्लिनिक सील कर रहा है, तो दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में डॉक्टर ही नदारद हैं। इस विरोधाभास ने ग्रामीणों की समस्याओं को और भी गंभीर बना दिया है।
बमीठा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत दयनीय
ताजा मामला बमीठा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का है, जहां की व्यवस्थाएं पूरी तरह से चरमरा चुकी हैं। यहां सुबह से इलाज के लिए पहुँचे मरीज घंटों डॉक्टरों का इंतजार करते नजर आए। गर्भवती महिलाएं तक जमीन पर बैठकर डॉक्टर साहब का इंतजार करती रहीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
ग्रामीण महिला बित्ता ने बताया, मैं सुबह 9 बजे से यहां बैठी हूँ। मेरे परिवार की एक महिला की डिलीवरी होनी है, लेकिन डॉक्टर अब तक नहीं आए।
वहीं, अनूप पाल नामक ग्रामीण ने बताया कि वह अपनी पत्नी का इलाज कराने आया है, लेकिन दोपहर के 12 बजने को हैं और डॉक्टर साहब अब तक नहीं पहुंचे। हम गरीब लोग हैं, सरकारी अस्पताल में ही उम्मीद लगाकर आते हैं। लेकिन यहां तो कोई देखने वाला ही नहीं है।
झोलाछापों पर कार्रवाई, लेकिन विकल्प कहाँ?
प्रशासन द्वारा जिले में झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है और अवैध क्लिनिकों को सील किया जा रहा है, जो कि सराहनीय है। लेकिन जब सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचते, तो ग्रामीणों के पास विकल्प ही क्या बचता है?
जरूरत है जवाबदेही और निगरानी की
स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि न केवल झोलाछापों पर कार्रवाई करे, बल्कि सरकारी डॉक्टरों की उपस्थिति और कार्यशैली पर भी सख्त निगरानी रखे। यदि डॉक्टरों की जवाबदेही तय नहीं की गई, तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं और अधिक प्रभावित होंगी।