छतरपुर। जीवन में भावनाओं का प्रबंधन कैसे किया जाए तथा अंर्तव्यक्तित्व संबंध में इसकी क्या उपयोगिता है विषय पर छात्रों के साथ शिक्षकों का गहरा संवाद हुआ। राज्य आनंद संस्थान की ओर से प्राचार्य लखनलाल असाटी ने बताया कि मानव का मानव के साथ जो भी व्यवहार दिखाई देता है उसके पीछे कुछ भावों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस व्यवहार में किसी भी भौतिक अथवा रसायनिक वस्तुओं का आदान-प्रदान नहीं होता है अपितु सिर्फ भावनाओं का ही आदान-प्रदान और मूल्यांकन होता है।
लखनलाल असाटी ने कुछ उदाहरण देकर कहा कि भावनाओं का प्रबंधन इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इससे हम बेवजह के आवेश से बच जाते हैं। कई बार किसी सड़क दुर्घटना को देखने के बाद भावनात्मक रूप से हम इतने एक्साइटेड होते हैं कि चोटिल व्यक्ति के उपचार में सहयोगी बनने के स्थान पर वाहन की तोडफ़ोड़ और चालक के साथ मारपीट में लग जाते हैं। कई बार मामूली सी बात पर हम सारा घर सिर पर उठा लेते हैं। वस्तुत: देखा जाए तो बाद में हमें खुद अपने किए गए व्यवहार पर पछतावा होता है। यंग ऐज में भावनाओं में बह जाने से शोषण और अपराध दोनों समाज में बढ़ते हुए दिखाई देते हैं।
भावनाओं के प्रबंधन में सबसे पहला और आधारभूत भाव विश्वास है। यदि हम सही-सही विश्वास कर पाते हैं अर्थात् यह निश्चय कर पाते हैं कि सामने वाला मेरा भला चाहता है तब हम संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। इसी तरह से ममता, वात्सल्य, श्रेष्ठता, गौरव, कृतज्ञता, सम्मान, स्नेह और प्रेम के भाव की सही-सही समझ हो जाने पर हमारी प्रतिक्रिया अत्यंत संतुलित होती है। ममता अकेला ऐसा भाव है जिसके निर्वहन में भौतिक एवं रसायनिक वस्तुओं की आवश्यकता होती है। क्योंकि इसका भाव शरीर के पोषण को लेकर पर यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि मोह के कारण ममता का आधिक्य बच्चे को गलत दिशा में ले जा सकता है। कई अभिभावकों की शिकायत होती है कि उनका बच्चा मैगी अथवा जंक फूड अधिक खाता है पर यहां यह अत्यंत रोचक तथ्य है कि घर में पहली बार मैगी अथवा जंक फूड लाने वाला बच्चा नहीं अपितु अभिभावक था।