छतरपुर। आज हर बेटी को अपनी सुरक्षा, आत्मसम्मान, परिवार की संस्कृति और गौरव की रक्षा के लिए परिपक्व होने की जरूरत है। हमारे समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जिनके गुणों को आत्मसात कर हम अपने जीवन में स्वाभिमान का बीजारोपण कर  सकते हैं। वीरांगना रानी दुर्गावती भी बुन्देलखण्ड के कालिंजर में जन्मीं एक ऐसी ही बेटी हैं। आज हर बेटी को उनका जीवन आत्मसात करना चाहिए। यह बात देश की वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता नंदिता पाठक ने शुक्रवार को छतरपुर के महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में कही।
महाराजा छत्रसाल स्मृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुईं नंदिता पाठक ने कहा कि रानी दुर्गावती ने 10 साल की उम्र में घुड़सवारी सीखी। घुड़सवारी करने के दौरान उन्हें एक मदमस्त हाथी मिला जिस पर उन्होंने बैठने की जिद की इसके बाद वे अपने घोड़े से उतरीं  और हाथी के सामने हाथ जोड़े तो हाथी भी समझ गया कि यह तो साक्षात दुर्गावती हैं हाथी तुरंत बैठ गया और उन्हें अपने ऊपर बैठा लिया। एक बार जब वे मंदिर के दर्शन कर जंगल के रास्ते लौट रहीं थी तभी सामने शेर आ गया जिसे देखते ही दुर्गावती ने तीर चला दिया और शेर गिर पड़ा तभी राजा वहां आए और बोले यह शेर किसके तीर से गिरा तब रानी ने कहा यह मेरे तीर से नहीं गिरा यह तो आपके तीर से गिरा है। वे जब निर्णय लेती थी तब राजा गर्व महसूस करते थे।
वहीं रानी दुर्गावती के विवाह के योग्य होने के बाद उनके पिता ने 1542 ई. में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र 'दलपत शाहÓ के साथ करवा दिया। वे अपने पति के साथ पूरा राज्य देखा करतीं थीं वे हमेशा राज्य के दूसरे व्यक्तियों की मदद करती थीं जब एक बार उन्होंने महावत के बेटे की जान बचाई थी तबसे वह उनके अंत समय तक साथ रहा। शादी के कुछ समय बाद ही गोंडवाना राज्य के राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई। इस मुश्किल घड़ी में रानी दुर्गावती ने हिम्मत नही हारी और अपने 5 वर्षीय पुत्र को गोंडवाना राज्य का राजा घोषित कर राज काज अपने हाथों में ले लिया। इस तरह उन्होंने लगभग 15-16 साल तक गोंडवाना में शासन किया और राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी। इसके बाद जब अकबर आया तब अकबर के सामने राज्येंा के राजा नतमस्तक हो जाते थे लेकिन वे मुगुलों के खिलाफ लड़ीं और तीन-चार युद्ध भी जीते। यह पूरा कार्यक्रम नारियों को समर्पित रहा इसलिए मंच पर क्षेत्रीय विधायक ललिता यादव, कुलगुरू शुभा तिवारी, पूर्व नपाध्यक्ष अर्चना सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष विद्या अग्रिहोत्री सहित समाज की अनेक प्रखर महिलाएं उपस्थित रहीं और उन्होंने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की संयोजक शोध संस्थान की उपाध्यक्ष वंदना सिंह बुन्देला रहीं। उन्होंने भी इस कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। आयोजन में शोध संस्थान के अध्यक्ष राकेश शुक्ला राधे ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्थान अपने महापुरूषों को लेकर इसी तरह के गंभीर प्रयास जारी रखेगा। इस मौके पर संस्थान की ओर से भगवतशरण अग्रवाल, सचिव कमलेश अहिरवार, सहसचिव विनय चौरसिया, सुशील वैद्य, पुष्पेन्द्र खरे, आशीष ताम्रकार, विनय पटैरिया सहित अनेक लोग मौजूद रहे।