एकल नाटक- मां मुझे टैगोर बना दे का हुआ मंचन

छतरपुर। मेरी एक बात मानोगे...? आज जब स्कूल से घर जाना तो रात में चुपके से उठकर अपने मम्मी-पापा के चेहरे को सोते समय देखना और फिर दो मिनट के लिए अपनी आँखें बंद करके सोचना कि वो तुम्हारी पढ़ाई, तुम्हारे सपनों के लिए कितनी मेहनत करते हैं। आज जब स्कूल से घर जाना तो अपनी मम्मी के हाथ को अपने हाथों में लेकर उनको थैंक यू बोलना, ऐसे ही पापा के साथ करना। सोचना कि तुम जो जऱा सी फरमाइश पूरी न होने पर रूठ जाते हो, दो-दो दिन बात नहीं करते लेकिन वे सुबह पांच बजे से उठकर काम पर जाने के लिए सोचना शुरू कर देते हैं कि तुम्हारे अरमान पूरे कर सकें, तुम्हे अच्छे स्कूल में पढ़ा सकें।
ये संवाद हैं, उस एकल नाटक के जिसके प्रदर्शन जम्मू से आए कलाकार लकी गुप्ता अपने नाटक के दौरान बच्चों से करते हैं।
लकी इन दिनों छतरपुर में नाटक मां मुझे टैगोर बना दे का मंचन स्कूलों में कर रहे हैं। शुक्रवार को केंद्रीय विद्यालय, महर्षि विद्यालय और गांधी आश्रम में इस नाटक का मंचन किया गया। बिना किसी खास तामझाम के वे अपने अभिनय से बच्चों और दर्शकों को ऐसे जोड़ते हैं कि आँखें नम हो जातीं हैं। रंगकर्मी शिवेन्द्र शुक्ला ने जानकारी देते हुए बताया कि लकी गुप्ता ने इस नाटक का सफर आज से लगभग 16 साल पहले शुरू किया था। वे पूरे देश में घूमकर बच्चों के बीच यह नाटक कर रहे हैं। नीरज खरे ने बताया कि देश के 23 राज्यों में वे 16 सौ से ज्यादा मंचन कर चुके हैं और उनका यह सफर लगातार जारी है। यह नाटक एक ऐसे बच्चे की कहानी है जिसके मां बाप बेहद गरीब हैं लेकिन बच्चा पढऩा चाहता है। उसके इस सफर में किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है यह इस नाटक के विभिन्न किरदारों के माध्यम से वे अकेले मंचित करते हैं। लकी का विभिन्न चरित्र में प्रवेश करने का जो ढंग है वह आश्चर्यचकित करने वाला होता है। यही वजह है कि दर्शक नाटक से बेहद संजीदगी से जुड़ते हैं और प्रभावित होते हैं।