मुझे प्राप्त करने के लिए साधना नहीं, प्रेम चाहिए
छतरपुर। सिद्धबाबा आश्रम देरी रोड उर्मिल नदी के किनारे चल रही श्रीमद् भागवत कथा में गुरुवार को छप्पन भोग लगाकर श्रद्धालुओं ने गोवर्धन महाराज की पूजा-अर्चना करते हुए मानसिक परिक्रमा की। कथा प्रसंग में पर बोलते हुए श्री भगवती प्रसाद कौशिक जी ने कहा कि प्रेम रस के रसिक परमात्मा श्रीकृष्ण गोकुल-वृन्द्रावन में गोप-गोपियों को प्रेम की शिक्षा देते हुए कहते हैं कि मुझे प्राप्त करने के लिए किसी भी साधना की आवश्यकता नहीं है। मैं तो प्रेम का पुजारी हूं। जिसने भी मुझे अन्तर आत्मा से याद कर लिया मैं उसी का हो गया। आचार्य श्री ने माखन चोरी लीला पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान गोपियों के घर माखन चोरी करने नहीं अपितु ज्ञान पुंज से गोपियों के हृदय को प्रकाशित करने और प्रेमभाव को प्रकट करने जाते थे। उन्होंने कहा कि भक्त के हृदय में विकार प्रकट न हो इसलिए भगवान उन पर कृपा दृष्टि भी रखते हैं। इन्द्र के अहंकार की कथा का विस्तार करते हुए कथाचार्य ने कहा कि त्रिलोक का ऐश्वर्य पाकर इन्द्र अभिमान से चूर होकर ईश्वरी सत्ता की सच्चाई से दूर हो गया था। इसीलिए परमात्मा ने अपने भक्त इन्द्र को गोवर्धन लीला के माध्यम से सच्चाई को ज्ञान कराया। तभी से आज तक ब्रजभूमि में विराजमान श्री गिरिराज पर्वत की जो भक्त पूजा-अर्चना करते है और समर्पित होकर दूध की धारा के साथ परिक्रमा लगाते है, गिरिराज जी उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते चले आ रहे हैं।
आश्रम महंत रामदास जी महाराज सभी भगवत कथा प्रेमियों से आग्रह करते है कि प्रतिदिन 1 बजे से प्रारंभ होकर शाम 5 बजे चलने वाली इस कथा में पधार कर भक्ति के रंग में सराबोर होकर, इस जन्म के साथ-साथ अगले जन्म को भी सफल बनाएं। शुक्रवार को श्रीकृष्ण-रूकमणि विवाह की कथा होगी। सभी भक्तजन इस विवाह को बड़े ही धूमधाम से मानाएंगे। अत: आप अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर इसका आनंद अवश्य उठाएं।